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मैं उसका अंश हूँ, बस यही पहचान है मेरी...

Wednesday 25 July 2012

अंजान बने रहोगे, तो भी पापी बराबर के ही हो

सामाजिक बुराईयों पर सामाजिक नियम ही अंकुश लगा सकते हैं। मीडिया खाप पंचायतों के निर्णय को इस तरह पेश करता है कि परंपरा, सभ्यता और संस्कृति के रक्षकों को राक्षस करार दे देता है। पंचायतों के निर्णय को मीडिया ने विवादित बना कर पंचायतों के विरुद्ध ही वातावरण तैयार कर दिया है, लेकिन गर्त में जा रहे समाज को लेकर मीडिया कभी प्राइम टाइम में बहस नहीं करता। महिलाओं के बारे में अधिकांश की सोच एक जैसी है। अधिकांश को पत्नी शालीन और प्रेमिका कमसिन ही चाहिए। अमिताभ बच्चन से बड़ा हाई-प्रोफाइल इस देश में कौन होगा? जिस समाज में सेक्स कोई मुद्दा ही नहीं है, वह उस मुंबईया समाज का ही एक अंग हैं, लेकिन अपनी बेटी को फिल्म की तो बात ही छोडिय़े, विज्ञापन में भी नहीं आने देते। खैर, वह उनका या उनकी बेटी का अपना निर्णय है, जिस पर मुझे टिप्पणी करने का कोई अधिकार नहीं है। मूल बात यह है कि जनपद बदायूं के गांव हजरतपुर का निवासी एक दरिंदा चुन्ना गांव के ही अपने दोस्त विकास के साथ सगी चचेरी बहन से लगातार बलात्कार कर रहा था। चार-पांच महीने का गर्भ प्रकाश में आने के बाद घटना का खुलासा हुआ। पीडि़त की मां की तहरीर पर मुश्किल से पुलिस ने एफआईआर दर्ज की। मुकदमे के बाद पुलिस ने दोनों आरोपियों को नियमानुसार गिरफ्तार कर जेल भी भेज दिया। फिलहाल वह दोनों जेल में ही हैं। उधर मेडीकल आदि के बाद पीडि़त के परिजनों ने गर्भपात करने का अनुरोध किया, तो डाक्टर्स ने छ: माह का गर्भपात करने से इंकार कर दिया। समय पूरा होने पर सोमवार को उस बलात्कार की पीडि़त बच्ची ने एक बच्चे को जन्म दे दिया है। अब सवाल खाप पंचायतों का विरोध करने वालों से ही है कि भारत का संविधान जेल में बंद उन दरिंदों को अधिक से अधिक क्या सजा दे सकता है? इन दरिंदों को खाप पंचायत के अनुसार सजा क्यूं नहीं मिलनी चाहिए? दंतकथा के अनुसार मैंने सुना है कि जनपद बदायूं में ही कस्बा बिल्सी के पास एक गांव था, जिसके जमींदार की एक दिन अचानक अपनी जवान बेटी पर नजर पड़ी, तो वह आसक्त हो गया। उसने अपनी पत्नी से कहा कि वह बेटी को हमबिस्तर होने के लिए बाध्य करे, तो पत्नी ने स्पष्ट मना कर दिया। मना करने पर जमींदार ने तमाम तर्क दिये और अंत में कहा कि वह कल सुबह पंचायत बुलायेगा। पंचायत ने अगर कह दिया, तो तुम्हें बेटी को हमबिस्तर कराना पड़ेगा। अगले दिन उसने पंचायत बुलाई और कहा कि किसी की घोड़ी एक और घोड़ी को जन्म दे दे, तो वह व्यक्ति उस घोड़ी पर सवारी कर सकता है या नहीं। जमींदार की मंशा से अनभिज्ञ पंचायत ने एक स्वर में कह दिया कि घोड़ी का मालिक घोड़ी के बच्चे पर भी सवारी कर सकता है। इसी तर्क को आधार बना कर उस जमींदार ने पत्नी से कह दिया कि आज शाम को वह बेटी के साथ ही सोयेगा। असहाय मां ने बेटी को पूरी बात बता दी। परेशान बेटी कमरा अंदर से बंद कर ईश्वर का ध्यान करने बैठ गयी। शाम हुई, वह जमींदार आया और उसने आकर उस कमरे का दरबाजा तोड़ दिया, तभी आसमान से उस गांव पर विशाल पत्थरों की बरसात होने लगी। पत्थरों की बरसात में पूरा गांव दब गया। अनजाने ही सही, लेकिन उस पंचायत में पूरे गांव ने हामी भरी थी, सो ईश्वर ने पूरे गांव को ही तबाह कर दिया। अजीब किस्म के पत्थरों वाला वह पहाड़ जैसा टीला आज भी कस्बा बिल्सी से आगे बिजनौर राजमार्ग पर स्थित है, जिसे नठिया ठेरा नाम से जाना जाता है। उस पहाड़ नुमा टीले की जड़ में बस्ती बस गयी है, जिसे बादशाहपुर गांव के नाम से जाना जाता है। उस घटना के कारण इस गांव का प्राचीन नाम यही था, लेकिन इस गांव में लोग रिश्ते लेकर आने से कतराते थे, जिससे ग्रामीणों ने प्रार्थना पत्र देकर नाम बदल लिया। उक्त शब्द आपको काल्पनिक कहानी महसूस हो रहे होंगे, लेकिन इस कहानी को मैंने बचपन से सुना है और फिर बाद में उस टीले को ध्यान से देखा है, इसलिए मुझे सच्चाई पर आशंका नहीं है, इसलिए यह भी दावे के साथ कह सकता हूं कि गर्त में जा रहे समाज को मूकदर्शकों की भांति देखने वाले आज भी बराकर के ही दोषी हैं, ईश्वर की मार से कोई नहीं बच पायेगा, इसलिए अभी समय है, बचा सको, तो बचा लो, इस समाज को।