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मैं उसका अंश हूँ, बस यही पहचान है मेरी...

Wednesday 7 December 2011

कथित स्वामी के पास रहने वाली लड़कियां अधीनस्थों की ही पत्नियां क्यूं हैं?

पूर्व गृह राज्यमंत्री और भ्रम के चलते देश के बड़े संतों में गिने जाने वाले स्वामी चिन्मयानंद सरस्वती से जुडऩे वाली लड़कियां गृहणियां बन कर ही क्यूं रह जाती हैं? यह सवाल इसलिए उठ रहा है कि उनके पास रहने वाली अधिकांश लड़कियों का उन्होंने ही अपने कर्मचारियों से विवाह करा दिया है या फिर परेशान होकर युवतियों ने स्वयं ही प्रेम विवाह कर लिया है, जो धार्मिक या राजनैतिक महत्वकांक्षाओं को तिलांजलि देकर परिवार के साथ किसी तरह जीवन गुजार रही हैं।
कथित स्वामी चिन्मयानंद के बारे में कहा जाता है कि वह लड़कियों के प्रति शुरू से ही बेहद उदार रहे हैं, तभी उनके आसपास शुरू से ही लड़कियां देखी जाती रही हैं। अधिकांश लड़कियों का परिचय वह भतीजी कह कर ही कराते रहे हैं। ऐसी लड़कियों की संख्या निश्चित नहीं है, क्योंकि उनसे जुड़े लोग एक नई लडक़ी का खुलासा कर स्तब्ध कर देते हैं। फिलहाल उनके आसपास दिख रही लड़कियों की ही बात करें तो रानी (काल्पनिक नाम) नाम की लडक़ी को भी भतीजी बता कर परिचय कराते रहे हैं, पर तीन साल पहले उसका विवाह अपने गनर के साथ करा दिया, जो उत्तराखंड में परिवार के साथ रह रही है। सीता (काल्पनिक नाम) भी साथ देखी जाती थी, इसे भी भतीजी बताया जाता था, पर एक साल के बाद इसका भी विवाह कर दिया, जो आज कल परिवार के साथ बरेली में रहती है। लक्ष्मी (काल्पनिक नाम) को भी यह कथित स्वामी भतीजी बताता रहा है, पर इसको भी एक गरीब ब्राह्मण परिवार के लडक़े के पल्ले बांध दिया, जो आज कल कनखल स्थित आश्रम में परिवार के साथ रह रही है, यहां पति आचार्य का दायित्व निभा रहा है। यह लडक़ी बेहद सुंदर व बुद्धिमान बताई जाती है, इसी के पति को शाहजहांपुर के मुमुक्षु आश्रम स्थित संस्कृत महाविद्यालय में नौकरी दे रखी है, जो घर बैठे वेतन ले रहा है। इसी तरह एक अन्य राजवती (काल्पनिक नाम) की लडक़ी को भी भतीजी बता कर प्रचारित करता था, पर तीन साल के बाद इसका विवाह अपने दूसरे गनर के साथ करा दिया, जो आज कल आश्रम में ही रह रही है। इसी तरह एक और लता (काल्पनिक नाम) नाम की लडक़ी को भी अपने चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी के साथ बंधन में बांध चुका है। इनके अलावा गीता (काल्पनिक नाम) नाम की लडक़ी ने प्रेम विवाह कर लिया है, जो आज कल दिल्ली में अपने परिवार के साथ खुश है, इसी तरह पिछले दिनों प्रेम विवाह करने वाली सुमित्रा (काल्पनिक नाम) भी उत्तराखंड में कहीं रहती है, जिसके अभी कोई बच्चा नहीं है।
सवाल यह है कि यह सब लड़कियां इस कथित स्वामी के पास क्यूं आईं? अगर सन्यास के लिए आईं, तो फिर गृहस्थ क्यूं बन गयी और अगर राजनीति के लिए आईं तो फिर एक भी लडक़ी को राजनीति में स्थापित क्यूं नहीं किया? अगर इन सबको कथित स्वामी शिष्या या बेटी की तरह ही रखते थे, तो फिर उनके विवाह अपने स्टेटस के अनुसार क्यूं नहीं किये? जाति, वर्ण या गोत्र आदि का ध्यान क्यूं नहीं रखा? इन सवालों का कथित स्वामी के पास शायद ही कोई जवाब हो, क्योंकि भुक्तभोगी साध्वी चिदर्पिता बताती हैं कि कथित स्वामी लड़कियों को शुरू में निश्छल भाव से ही साथ रखता है, लेकिन धीरे-धीरे उन्हें अपने रंग में ढाल लेता है। संबंध स्थापित हो जाने के बाद लडक़ी में अधिकार भाव आना शुरू होता है तो उसकी शादी करा देता है, लेकिन उससे पहले एक नया शिकार फांस चुका होता है। इस कथित स्वामी का यह क्रम दशकों से चल रहा है। अधिकांश लड़कियां गरीब परिवारों की रही हैं या घर से विद्रोह कर कथित स्वामी के पास आ गयी थीं, जिससे इस कथित स्वामी के विरुद्ध नहीं बोल पायीं, साथ ही शादी के बाद बच्चे हो जाने के कारण वह अपना अच्छा-भला जीवन बर्बाद करने का जोखिम भी नहीं उठा सकती? अपार धन और विशाल राजनीतिक  कद के चलते वह सब भयभीत हैं। हालांकि उनके पति भी अच्छी तरह जानते हैं कि उनकी पत्नी किस जीवन से निकल कर आई है, पर भय और शर्म के चलते वह सब मौन हैं, जबकि उनके पास भी खुल कर बोलने का उत्तम समय है, क्योंकि इस समय शांत रह गये, तो अपराध बोध से मुक्त होने का उन्हें आगे शायद ही अवसर मिले।
लड़कियों को भतीजी बताने के पीछे भी सटीक कारण है। समाज के लोग भले ही नहीं जानते हों, पर संत समाज जानता है कि सरस्वती संप्रदाय में लड़कियां सन्यास धारण नहीं कर सकतीं, इसीलिए यह किसी को शिष्या नहीं बताता है। अगर यह शिष्या बतायेगा तो संत सवाल कर सकते हैं कि जब सन्यास से कोई लेना-देना नहीं है, तो लड़कियों को आश्रम में क्यूं रखता है?, इसीलिए शुरू में साध्वी चिदर्पिता को भी भतीजी ही बताता था। इसी तरह अमिता सिंह नाम की लडक़ी के बारे में अब किसी को कोई जानकारी नहीं है, जबकि उसका नाम बायोडाटा में पत्नी के स्थान पर भी लिखा हुआ है। कथित स्वामी तकनीकी भूल बता कर पल्ला झाडऩे का प्रयास कर रहा है, जबकि यह गहन जांच का विषय होना चाहिए।
कथित स्वामी के चरित्र या कारनामों की जानकारी शुरू से ही अधिकांश लोगों को है, पर कद और धन के सामने सब मौन ही रह गये और अब उसे घेरने की बजाये साहसी साध्वी चिदर्पिता को ही दोषी ठहराने का प्रयास कर रहे हैं और सवाल कर रहे हैं कि अब तक चुप क्यूं थीं? साध्वी चिदर्पिता ने विश्वास कर कुछ लोगों को अपने जीवन के बारे में विस्तार से बताया था, जिनमें दिल्ली और लखनऊ में बैठे बड़े पत्रकार भी हैं, लेकिन मदद करने की बजाये ऐसे लोगों का साध्वी चिदर्पिता के प्रति भाव ही बदल गये। साध्वी को श्रद्धेय और आप कहने वाले तुम कहने लगे, साथ ही सीमा पार करने का प्रयास करने लगे, तो ऐसे लोगों से साध्वी ने झटके से किनारा कर लिया, जबकि उन्हें इस समय खुल कर बोलना चाहिए।