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मैं उसका अंश हूँ, बस यही पहचान है मेरी...

Monday 28 November 2011

डर है कि पलायन न कर जायें जस्टिस काटजू

परिवार से मिले संस्कारों के कारण हर व्यक्ति की अपनी अलग प्रकृति होती है, जो कार्य और व्यवहार में स्पष्ट दिखाई देती है। भारत निर्वाचन आयोग पहले भी था। आयोग के पास अधिकार और शक्ति पहले भी थी, लेकिन उन अधिकारों और शक्तियों का प्रयोग करने का साहस या बुद्धि पहले के लोगों में नहीं थी, पर जब टीएन शेषन के हाथ में दायित्व आया, तो उसी आयोग को देश का बच्चा-बच्चा जान गया। टीएन शेषन के साहस का ही परिणाम है कि आज भी आयोग उसी लीक पर कार्य करता नजर आ रहा है, तभी आयोग के प्रति अधिकांश लोगों के मन में आज तक सम्मान है, इसीलिए भारत निर्वाचन आयोग और उसके कार्यों की जब भी चर्चा की जायेगी, तब टीएन शेषन का नाम भी पूरे सम्मान से लिया जाता रहेगा। हालांकि प्राचीन कहावत के चलते अधिकांश लोगों का मानना है कि अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ सकता, पर ऐसी कहावतों को टीएन शेषन जैसे विरले ही पलटते हैं। उन्होंने सिद्ध कर दिया कि कर्तव्य पालन अगर प्राथमिकता हो, तो एक ही व्यक्ति सब कुछ बदल सकता है या कुछ भी कर सकता है। इसलिए लोगों के उस तर्क में कोई दम नजर नहीं आता कि पूरा तंत्र ही खराब है, तो हम अकेले क्या कर सकते हैं? ऐसी बेतुकी दलीलें लापरवाह या स्वार्थी ही दे सकते हैं।
खैर, बात प्रकृति, व्यवहार, साहस और ईमानदारी की है, जिसके बल पर टीएन शेषन हमेशा याद किये जाते रहेंगे, ठीक उसी तरह जस्टिस एम. काटजू भी अपनी एक अलग लकीर खींचने का प्रयास करते नजर रहे हैं। न्यायायिक दायित्व का निर्वहन करते हुए कठोर फैसले लेने के कारण वह चर्चा में ही नहीं रहे हैं, बल्कि न्याय की देवी के प्रति उन्होंने सम्मान को और बढ़ाने का ही काम किया है। अब भारतीय पे्रस परिषद के अध्यक्ष के रूप में कर्तव्य का पालन कर टीएन शेषन की ही तरह अमर ख्याति पाने की राह पर अग्रसर दिख रहे हैं। उनकी स्पष्टवादिता, ईमानदारी और साहस का ही परिणाम है कि पद संभालते ही मीडिया जगत की कई बुराईयों पर स्वत: ही अंकुश लगना शुरू हो गया है। निर्भीक जस्टिस काटजू अगर इसी राह पर चलते रहे, तो वह भी भारतीय प्रेस परिषद के इतिहास में हमेशा याद किये जाते रहेंगे, पर ऐसा कहना अभी जल्दबाजी ही कही जा सकती है, क्योंकि टीएन शेषन के सामने सिर्फ शातिर और घाघ राजनेता थे, पर जस्टिस काटजू के सामने शातिर और घाघ राजनेताओं से भी घातक पत्रकारों से निपटने की चुनौती है, जिनसे पार पाना वास्तव में बहुत बड़े साहस की बात कही जायेगी, क्योंकि तमाम राजनेताओं का बर्चस्व मीडिया में भी है, लेकिन जस्टिस काटजू की अब तक की कार्यप्रणाली से सकारात्मक परिणाम आने की ही आशा अधिक की जा सकती है। वैसे निर्लिप्त भाव से काम करने वाले लोगों का साथ ईश्वर भी देते हैं, इसीलिए ऐसे लोग कभी हार नहीं मानते। उन्हीं में से एक हैं जस्टिस एम. काटजू।
राजनेताओं की बात करें, तो कांग्र्रेस स्वयं को सबसे पुराना दल बता कर लोकतंत्र की हितैषी होने का दावा करती है। भाजपा भी लोकतंत्र का हितैषी होने का दंभ भरती है, लेकिन देश के सबसे बड़े यह दोनों राजनैतिक दल भ्रष्टाचार और लापरवाही के पैमाने में आसपास ही खड़े नजर आते हैं, क्योंकि लोकतंत्र को और मजबूत करने के लिए जब टीएन शेषन जैसे लोग राजनीति में आने का प्रयास करते हैं, तो कांग्रेस हो या भाजपा, कोई साथ देता नजर नहीं आता, लेकिन जनता ऐसे लोगों का सम्मान आज भी पूरी श्रद्धा से करती है, पर दुर्भाग्य ही कहा जायेगा कि तंत्र में व्याप्त गंदगी साफ करने की बजाये निष्छल और ईमानदार लोग गंदगी छोड़ कर दूर चले जाना अधिक पसंद करते हैं, तभी आज चारों ओर भ्रष्टाचार और लापरवाही का वातावरण नजर आ रहा है। यह डर आज भी बरकरार है, पर विश्वास भी है कि जस्टिस एम. काटजू पलायन नहीं करेंगे। लोक और तंत्र की रक्षा के लिए उन्हें लडऩा ही होगा, साथ ही वह लोकतंत्र की मजबूती के लिए हर सीमा  पार करने को स्वतंत्र हैं।